बच्चियों के साथ बढ़ती घटनाओं पर बीजेपी विधायक का सवाल, "क्या हम रावण दहन के अधिकारी हैं?"
मध्यप्रदेश में बच्चियों के साथ रेप और हत्या की घटनाओं को लेकर राज्य के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव ने सोशल मीडिया पर एक संवेदनशील पोस्ट साझा किया है। अपनी फेसबुक पोस्ट में उन्होंने दशहरे के दौरान रावण दहन की प्रथा पर सवाल उठाते हुए कहा, "वर्तमान परिदृश्य में क्या हम रावण दहन के अधिकारी हैं?"
अखबारों में पूजन और अपराध दोनों साथ:
भार्गव ने अपने पोस्ट में लिखा कि एक ओर नवरात्रि के दौरान देवी और कन्या पूजन हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अखबारों में अबोध बच्चियों के साथ दुष्कर्म और हत्या की खबरें लगातार छप रही हैं। उन्होंने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि दुनिया के किसी और देश में ऐसे समाचार देखने या पढ़ने में नहीं आते। उन्होंने पूछा, "क्या हम ऐसे हालात में रावण का पुतला जलाने का अधिकार रखते हैं?"
रावण के प्रतीकात्मक अर्थ पर सवाल:
दशहरे पर रावण दहन की परंपरा पर बात करते हुए गोपाल भार्गव ने कहा कि हमें यह सोचना होगा कि क्या हम वास्तव में रावण दहन करने के योग्य हैं। उन्होंने रावण की विद्वत्ता और तपस्वी गुणों का जिक्र करते हुए कहा कि आजकल जिन लोगों को न तो धर्म का ज्ञान है और न ही वे रावण के जीवन से कुछ सीखते हैं, उनके लिए रावण दहन मात्र बच्चों के मनोरंजन का साधन बनकर रह गया है।
कानून के बावजूद बढ़ रही घटनाएं:
भार्गव ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि बच्चियों के साथ हो रहे अपराधों को रोकने के लिए मृत्युदंड और कड़ी सजा के कानून बनने के बावजूद, ऐसी घटनाएं कम होने के बजाय और बढ़ रही हैं। उन्होंने सभी से आग्रह किया कि रावण का पुतला जलाने से पहले हमें अपने अंदर के रावण को मारने का प्रण लेना चाहिए।
उन्होंने कहा कि यह नवरात्रि केवल पूजा और उत्सव तक सीमित न रहकर आत्ममंथन का समय होना चाहिए, जिसमें हम यह सोचें कि समाज में हो रही इन भयावह घटनाओं के लिए हम कैसे जिम्मेदार हैं और इस पर कैसे अंकुश लगाया जा सकता है।
समाज के प्रति जिम्मेदारी पर जोर:
गोपाल भार्गव का यह संदेश ऐसे समय में आया है जब देशभर में महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चर्चाएं हो रही हैं। उनके इस सवाल ने समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बुराई के प्रतीक रावण का दहन करना मात्र एक परंपरा बन गई है या हमें इसके पीछे छिपे गहरे अर्थ को समझने की आवश्यकता है?