MP में है। जीजा बाई माता' मंदिर: जहां चप्पलें दान करने से होती हैं देवी प्रसन्न
भारत में मां देवी के मंदिरों की कोई कमी नहीं है, जहां श्रद्धालु अपनी आस्था के साथ मां के चरणों में शीश नवाते हैं। आमतौर पर मंदिरों में जाने से पहले भक्त चप्पल-जूते बाहर उतारते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक ऐसा अनूठा मंदिर है, जहां मां देवी को चप्पल और जूते दान करने की परंपरा है। यह मंदिर भोपाल के कोलार क्षेत्र में एक पहाड़ी पर स्थित 'माता कामेश्वरी शक्ति पीठ' के नाम से प्रसिद्ध है, जिसे 'चप्पल वाली माता' के नाम से जाना जाता है।
मंदिर का इतिहास और स्थापना
इस मंदिर की स्थापना वर्ष 1999 में मंदिर के मुख्य पुजारी ओमप्रकाश महाराज द्वारा की गई थी। मंदिर के अन्य पुजारी सुभाष शर्मा बताते हैं कि ओमप्रकाश महाराज को अनुभूति हुई कि पहाड़ी पर देवी कामेश्वरी का प्राचीन दरबार रहा है, जिसके बाद उन्होंने गांववासियों के सहयोग से वहां माता के बाल रूप की स्थापना की। इसके बाद से यहां मां को बेटी के रूप में पूजा जाने लगा, और मंदिर को 'जीजीबाई माता' का नाम दिया गया, जो स्थानीय भाषा में 'बहन' का संबोधन है।
देवी की अनोखी पूजा और चप्पल दान की परंपरा
मंदिर में देवी को बाल रूप में पूजा जाता है, और उनका श्रृंगार भी एक बेटी की तरह किया जाता है। पुजारी बताते हैं कि देवी के लिए रोज़ाना चश्मा, छाता, इत्र, कंघा और चप्पल जैसी चीजों से श्रृंगार किया जाता है। देवी के वस्त्र दिन में 2-3 बार बदले जाते हैं। भक्त यहां चप्पल और जूते माता के चरणों में अर्पित करते हैं, और मान्यता है कि ऐसा करने से मां देवी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
देवी को चप्पल अर्पित करने की यह परंपरा स्थानीय लोगों के बीच गहरी आस्था का प्रतीक है। भक्तों का विश्वास है कि यहां चप्पल दान करने से मां उनकी कठिनाइयों को हरती हैं और सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं। मंदिर में चप्पल दान करने वाले केवल स्थानीय भक्त ही नहीं हैं, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु माता के लिए चप्पल और जूते भेजते हैं।
भक्तों के अनुभव और आस्था
मंदिर के परिसर में फूल और माला बेचने वाली मनी देवी बताती हैं कि पिछले 20 सालों से वह यहां दुकान चला रही हैं और 'चप्पल वाली माता' की कृपा से उनके जीवन में समृद्धि आई है। उन्होंने भी चप्पल दान की थी और उनकी सभी मन्नतें पूरी हुईं। इसी तरह, नियमित रूप से मंदिर आने वाले भक्त बाल किशन राजपूत बताते हैं कि उन्होंने माता को चप्पल और श्रृंगार का सामान अर्पित किया और उनकी आस्था है कि देवी उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगी।
सामाजिक सेवा के साथ आस्था का केंद्र
मंदिर के पुजारी सुभाष शर्मा बताते हैं कि भक्तों द्वारा दान की गई चप्पलें और वस्त्र गरीब और जरूरतमंदों में बांट दिए जाते हैं। इसके अलावा, भोपाल के अनाथ आश्रमों में भी यह सामग्री भेजी जाती है। यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि समाजसेवा का भी एक माध्यम बन गया है। खास बात यह है कि मंदिर में कोई दानपेटी नहीं है और न ही कोई ट्रस्ट। भक्तों द्वारा स्वेच्छा से दिए गए दान से ही मंदिर का संचालन होता है।
मंदिर तक कैसे पहुंचें?
भोपाल के कमलापति रेलवे स्टेशन से इस मंदिर की दूरी लगभग 20-25 किलोमीटर है। नादरा बस स्टैंड से कोलार के लिए बस मिलती है, जहां से ललिता नगर पहुंचकर भक्त पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक जा सकते हैं। लगभग 300 सीढ़ियों की चढ़ाई के बाद यह अनोखा मंदिर आता है, जो न केवल श्रद्धालुओं की आस्था बल्कि उनकी सामाजिक जिम्मेदारियों का भी प्रतीक है।
निष्कर्ष
'चप्पल वाली माता' का यह मंदिर भोपाल की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अद्वितीय उदाहरण है। यहां न केवल देवी की अनोखी पूजा होती है, बल्कि श्रद्धालुओं के चप्पल और जूते दान करने की परंपरा ने इसे खास बना दिया है। इस मंदिर में हर वर्ष हजारों भक्त अपनी मन्नतों के साथ आते हैं और देवी की कृपा से उनके जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करते हैं।