ओटीटी और सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र और प्रमुख प्लेटफॉर्म्स को नोटिस जारी
नई दिल्ली। ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बढ़ती अश्लील सामग्री को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जताई है। इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक ठोस कानून की आवश्यकता पर जोर दिया और केंद्र सरकार सहित प्रमुख ओटीटी व सोशल मीडिया कंपनियों को नोटिस जारी किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस गंभीर समस्या से निपटना कार्यपालिका और विधायिका का दायित्व है। जस्टिस गवई ने टिप्पणी करते हुए कहा, "हमें कार्यपालिका और विधायिका के कार्यक्षेत्र में दखल देने का आरोप लगाकर ट्रोल किया जा रहा है, जबकि अश्लील सामग्री पर नियंत्रण के लिए कदम उठाना इन संस्थाओं की जिम्मेदारी है।"
केंद्र की दलील
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि ओटीटी और सोशल मीडिया कंटेंट को लेकर कुछ नियम पहले से ही मौजूद हैं और नए नियमन पर विचार चल रहा है। उन्होंने विशेष चिंता व्यक्त करते हुए कहा, "बच्चे इन माध्यमों से अवगत हो रहे हैं। कई कार्यक्रमों में उपयोग की गई भाषा इतनी विकृत है कि दो वयस्क भी साथ बैठकर नहीं देख सकते।"
तुषार मेहता ने यह भी कहा कि वर्तमान में केवल आयु सीमा (18+) का एकमात्र मानदंड है, जो अपर्याप्त है। उन्होंने अदालत से इस दिशा में निगरानी रखने का आग्रह किया।
याचिकाकर्ता की मांग और अदालत की टिप्पणी
पत्रकार उदय माहूरकर द्वारा दायर याचिका में मांग की गई है कि केंद्र सरकार एक नेशनल कंटेंट कंट्रोल अथॉरिटी का गठन करे, जो ओटीटी और सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री को रोकने के लिए दिशानिर्देश तय करे। याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन ने दलील दी कि यह मामला गंभीर है और तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
हालांकि, सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने कहा, "यह नीतिगत मामला है और इसका हल निकालना सरकार की जिम्मेदारी है। कोर्ट के बार-बार हस्तक्षेप पर हमें आलोचना का सामना करना पड़ता है।"
किसे भेजा गया नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के साथ-साथ प्रमुख ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे नेटफ्लिक्स, उल्लू डिजिटल लिमिटेड, ऑल्ट बालाजी, ट्विटर, मेटा प्लेटफॉर्म्स और गूगल को भी नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने सभी पक्षों से इस मामले में जवाब मांगा है।
आगे क्या
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि "कुछ तो किया जाना चाहिए" और इस विषय में आवश्यक कदम उठाने के संकेत दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई जल्द तय होगी, जिसमें सभी पक्षों के जवाब पर विचार किया जाएगा।